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प्रकरण--४२
चरित्र की दरिद्रता

"जब देश ही दरिद्री है तब बारंबार प्रत्येक तीर्थ के भिखारियों की कथा या गाई जाय? "बुभुक्षितः किं न करोति पापम्" इस लोकोक्ति से यदि गया के भिखारी कच्चे पिंडे को गोमाता के मुँह से छीनकर खा जाते हुए देखे गए तो इसमें अचरज ही कौन सा हो गया? जिस देश में अकालपीड़ा से विकल होकर बिचारे अपने स्त्री बालकों को बेच दें, जिस देश के नर नारी भूखों मरते अपने प्यारे धर्म को छोड़कर ईसाई मुसलमान हो जाते हैं, जहाँ के दीन दुखिया मेहतरों में मिलकर जूठन खाते देखे गए हैं, जहाँ के स्त्री पुरुष अब बिना तरस तरसकर जरा सा अकाल पड़ते ही अपने प्यारे प्राणों को यमराज के हवाले कर देते हैं वहाँ यदि बत्तीस करोड़ प्रजा में छप्पन लाख पेशेवर भिखारी हुए तो क्या हुआ? इसलिये कहना पड़ेगा कि केवल छप्पन लाख ही भिखारी हों सो नहीं। जिन लोगों में "एक लज्जां परित्यज्य त्रैलोक्य विजयी भवेत्" का मंत्र ग्रहण कर लिया है उनकी संख्या, यदि ठीक गणना हुई हो तो छप्पन लाख हो सकती है किंतु मेरी समझ में इस देश के बत्तीस करोड़ निवासियों में से कम से कम बाईस करोड़, नहीं अट्ठाईस करोड़ भिखारी होंगे;