पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१९३

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नाम पावे। जन्म से सोलह वर्ष तक उसके लिये सीखने का जमाना है। पच्चीस वर्ष तक उसे 'गधा पचीसी' से बचाना चाहिए। फिर उसका कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता।"

"बेशक सत्य है। परमेश्वर ने आपको अवसर भी दिया है। बस आज से ही इस कार्य का अनुष्ठान आरंभ कर दीजिए। इस कार्य के उपयुक्त जो गुण दंपती में होने चाहिएँ वे सब आपकी जोड़ी में विद्यमान हैं। आप अवश्य कीजिए।"

इस तरह रात्रि के दस बजे, नापने अपने बिछौने पर बैठे हुए गोड़बोलें और प्रियानाथ के वार्तालाप के अंत में गौड़वाले के मुख से अंतिम वाक्य सुनकर पंडित जी ने "अच्छा महा- राज, खूब! आपने तो मुझ पर ही डिगरी कर दी। 'जो बोले सो घी को जाय' वाली कहावत चरितार्थ कर दी।" कहते हुए लज्जा से मुसकुराते मुसकुराते अपना मस्तक झुका लिया किंतु उस समय प्रियंवदा के मन में जो भाव पैदा हुए वे वास्तव में वर्णनातीत थे। हो सकता है कि उस समय की धुँधली रोशनी में अपने हृद्गत भावों को पति के हृदय में पहुँचा देने के लिये और प्राणोश्वर के भावों को ले आने के लिये प्यारी के मानसिक टेलीफोन की बिजली इधर से उधर और उधर से इधर चक्कर लगाने लगी हो किंतु सचमुच ही उसका हृदय आशा से उछल रहा था, उसकी आँखे लज्जा से मुँदी जाती थी और यदि कोई हदय के नेत्रों से देखने की शक्ति रखता