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प्रकरण--४३
गयाश्राद्ध में चमत्कार

गत प्रकरण के अंत में भोला कहार का नाम देखकर पाठक महाशय अवश्य कहेंगे कि भोला को लेखक इतने दिनों भूला क्यों रहा? किंतु यह न समझिए कि वह कहाँ चला गया था अथवा उसका नाम और काम ही उपन्यास लेखक को याद न आया। नही, हुआ यों कि इस यात्रा में इतने समय तक उसने कोई काम ऐसा नहीं किया जिससे उसे याद करने की आवश्यकता पड़े। जब मालिक, मालकिन की धोती धो देने, पानी भर लाने और बरतन चौका कर देने के सिवाय वह किसी तरह लीपने थामने का नहीं था, जब उसे थके माँदे मालिक के चरण चाप देने तक में बोझा मालूम होता था और जब बिलकुल निकम्मा होने पर भी पंडित जी उसे केवल दया करके, पंडितायिन की सिफारिश से उसके बड़े बूढों का गया श्राद्ध कराने के लिये ही ले आए थे तब उसके लिये कागज रँगने से लाभ ही क्या?

गया जी की समस्त वेदियों पर श्राद्ध करते समय पंडित जी की श्रद्धा और भक्ति यदि अटल रही हो, यदि वह समय समय पर पिंड प्रदान करते करते गद्गद् हो गए हों और यदि उनके हृदय की लेखनी ने भावना के चित्रपट पर उनके माता