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प्रकरण -- २५
मांसभक्षण

यद्यपि बहुत ही आवश्यकता समझकर पंडितजी ने कांतानाथ को भेज दिया और भेज देने में किया भी अच्छा ही, किंतु इनका मन उसके चले जाने से बड़ा बेचैन हो गया । यह उनका और वह इनका मन मैला नहीं होने देते थे। दोनों मे प्रीति असाधारण थी और इसलिये लोग इन्हें "राम लक्ष्मण की सी जोड़ी" कहा करते थे। इस समय यदि भाई पर विपत्ति है तो उससे चौगुनी इन पर है। यह समझकर इन्होंने भी उसके साथ ही लौट जाना चाहा था किंतु जो काम उठाया उसे चाहे जैसी विपत्ति पड़ने पर भी न छोड़ना, यही इनका सिद्धांत था। इसी के अनुसार इन्होंने किया और जब यह घबड़ाने लगे तब इनकी विपत्ति की संगिनी ने इनको धीरज दिलाकर संतोष कराया। उसने इनको समझा दिया कि --

"चाहे जैसी विपत्ति पड़े, छोटे भैया आपके छोटे भैया हैं। और तार से अनुमान होता है कि देवरानी के चरित्र का मामला है किंतु अभी तक कुछ बिगड़ा नहीं है। वह अवश्य साम, दाम, दंड और भेद से सँभाल लेंगे। आप घबड़ाइए नहीं। और वहाँ काम भी उन्हीं का है फिर आप चलते तब भी क्या कर सकते थे?"