पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२०१

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चाची, ताई कोर यावत नातेदारों को याद कर करके पिंड दिए परंतु कुछ नहीं किंतु जिस व्यक्ति का पिंड देते समय प्रयाग में इन्हें कुछ दिखलाई दिया था, जिसका पिंड देते ही प्रेतशिला पर इनके कानों में आशीर्वाद की भनक आई थी वही व्यक्ति शुत्र धोती पहने मुसकुराता हुआ इनके सामने, धर्म-चक्षुओं के समक्ष नहीं, हृदय को नेत्रों के आगे आकर इनसे कहने लगा -- "बेटा! चिरंजीवी रहो। खूब सुख पाओ। फलो फूलो। तुमने खूब ही अपने बचनों को निबाह दिया।" यों कहते कहते वह व्यक्ति एकदम अंतर्ध्यान हो गया। वहाँ के उप- स्थित मनुष्यों में से किसी ने न जाना कि क्या हुआ? हाँ पंडित जी की आँखों से धाराएँ बहने लगीं। उन्होंने -- "माता, तेरा आशीर्वाद।" कहा। लोगों ने इनका कहना अवश्य सुना और सुनकर वे चकित भी हो गए कि यह किससे बातें करते हैं, किंतु एक गौड़बोले और प्रियंवदा के सिवाय किसी को मतलब ही क्या? गौड़बोले पूर्व संकेत को याद करके कुछ कुछ अटकल लगाने लगे और प्रियंवदा भी अपनी बुद्धि पर जोर देकर इसका कारण तलाश करने के लिये किसी उधेड़ बुन में पड़ गई।

इससे पाठक यदि समझ लें तो अच्छी बात है। वह यदि ख्याल को दौड़ावें तो पता पा सकते हैं कि यह व्यक्ति कौन था? खैर उन्हें अधिक उलझन में न डालने के लिये मैं ही बत- लाए देता हूँ कि यह पंडित जी का पालन करनेवाली, इनके