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माता पिता के समय की नौकरानी, इन्हें पुत्र से भी बढ़कर
माननेवाली, पुत्रहीना, पतिहीना माता थी, उसी के अनुरोध
से, उसी के आग्रह से यह गयाश्राद्ध करने निकले थे और
निकले थे इसलिये कि प्रियंवदा बारंबार घर में उत्पात होने
की शिकायत किया करती थी। आज इस तरह उसका मोक्ष
हो जाना देखकर पंडित जी को बड़ा आनंद हुआ।
आनंद गूँगे का गुड़ है। मैं तो भला किसी गिनती का लेखक
नहीं किंतु बड़े बड़े धुरंधर विद्वान् भी हृदय के राव को ज्यों
का त्यों प्रकाशित नहीं कर सकते। अधिक से अधिक यदि
जोर मारें तो कदाचित् उसके लगभग पहुँच जायँ और सो
भी अपने मन की बात प्रकाशित करने में, कितु दूसरे को मन
की बात? कठिन है, असंभव है।
अस्तु, गया जी में समस्त वेदियों पर श्राद्ध करके निवृत्त
हो चुकने पर अक्षयवट में सुफल बोलने की बारी आई।
इनके गया-गुरू पंडित केसरीप्रसाद सिंह शर्मा पालकी में
विराजकर दो तीन चपरासी, दो एक कारिंदे और दस
बारह अर्दली के जवानों को लिए हुए कमर में पाजामा,
शरीर पर कोट, पैरों में बूट और सिर पर फेल्ट टोपी लगाए
अक्षयवट पर पहुँचे। इनके नाम के पूर्व पंडित और अंत में
शर्मा देखकर पाठक यह न समझ लें कि यह कोई संस्कृत
के अच्छे विद्वान् होंगे। इनकी योग्यता थोड़ी बहुत कैथी लिख
लेने में समाप्त होती थी। जिनको परमात्मा ने एक की जगह