पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२०४

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प्रसाद है किंतु जब यह किसी समय पहलवानो का दावा रखते थे तब इन्होंने अपने यार दोस्तों के परामर्श से अपना नाम बदल लिया था। वह यों कैसे भी बहादुर क्यों न हों किंतु जादू टोने से बहुत डरते हैं, इस कारण साईं फकीरों के, ओझाओं के और पीर पैगंबरों के नाम पर सोने में मढ़े हुए दो चार तावीज गले में अवश्य डाले रहते हैं। वहाँ का पानी लगकर इनके पैर अवश्य फूलकर हाथी जैसे मोटे हो गए हैं किंतु जब चौकड़ी में बिराजकर सिर पर मंडील बाँधे, हीरे मोती के जेवर से लदे, ढाल ललबार लगाकर बाहर निकलते हैं तब जो लोग इन्हें नहीं पहचानते उन्हें भ्रम होता है कि यह कहीं के रईस हैं। इनके नौकर चाकर यदि इन्हें बढ़ावे देकर, धोखे देकर ठगते हैं कुछ पर्वाह नहीं क्योंकि बड़े बड़े राजा महाराजा इनके यजमान हैं। हाँ एक आदमी इनकी ऐसी दशा देखकर जलनेवाला भी है। वह इनकी फूफी के चचिया ससुर की लड़की का लड़का है। उसका नाम बाचस्पति है और वह जब होनहार, शिक्षित, सच्चरित्र सुबा है किसी दिन यदि वह अपने नाम को चरितार्थ करे तो कुछ आश्चर्य नहीं। वह भी और गयावालों के समान एक गयावाल है किंतु पिता के आतंक और संस्कृत के साथ साथ सामायिक शिक्षा ने उसे इनकी तरह भटकने नहीं दिया। उसने अपनी जातिवालों को समझाकर उचित शिक्षा देने के लिये एक गयावाल स्कूल खुलवाया है, एक सभा स्थापित कराई