पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२०६

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हाथों में डालते गए! जब सब लोगों को यह ऐसे धर्मपाश में बाँध चुके तब यह बड़े मृदु मुसक्यान से, मधुर स्वर से और धीरे से बोले --

"यजमान, घर से जितना विचारकर आए हो उतना भेट करो। आप हमारे अन्नदाता हो। यह सब ठाठ आप ही का है।"

"हाँ! अगर खर्च में कमी पड़ गई हो तो कुछ चिंता नहीं। हवेली से ले सकते हो। घर पहुँचकर भेज देना। कुछ जल्दी थोड़ी ही है।" कहकर पारी पारी से गुरू जी के दो चार साथियों ने अनुमोदन किया। किसी ने गिन्नियाँ निकालीं, किसी ने रूपए निकाले और किसी ने अशर्फियाँ निकाल निकालकर उनके चरणों में ढेर कर दीं। किंतु जब गौड़बोले की पारी आई तब उसने हाथ जोड़कर कहा --

"महाराज, मैं दरिद्र ब्राह्मण हूँ। हाथ जोड़ने के सिवाय मुझसे कुछ नहीं बन सकता है। केवल पाँच रुपये हैं सो आप ले लीजिए।"

"नहीं यजमान, सिर्फ पाँच रुपए? पाँच ही रुपयों में अपने पुरुषाओं के स्वर्ग दिलाना चाहते हो। यह कदापि नहीं हो सकता।" कहकर गुरूजी ने थोड़ी बहुत हुज्जत भी की किंतु जब प्रियानाथ ने उनको समझा दिया तब सब लोगों की पीठ ठोककर गुरू जी ने कह दिया -- "भगवान् गया गदाधर आपका श्राद्ध, हमारे आशीर्वाद से सुफल करे।" बस