पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२०८

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में उन्नति होती देखकर उन्हें कुछ कुछ वृथा भी होने लगी है। कभी यह मन ही मन पछताते भी हैं परंतु इनके संगी साथी स्वार्थवश ऐसे भाव इनके मन में ठहरने नहीं देते।" बस इन बातों को सोचकर पंडित जी साथियों के उतावल करने पर भी वहाँ ठहरे। वाचस्पति के परामर्श से अवसर निकालकर गुरू जी से मिले। और एक दिन उन्हें अकेले में पाकर गुरू जी से उन्होंने स्पष्ट ही कह दिया --

"महाराज, आप बड़ा अनर्थ करते हैं। आप ही के कुकर्मों से आपका घर बैठ गया। आपके घर में पड़ी पड़ी विधवाएँ तो आपके कर्मों को रो रही है सो रो ही रही हैं किंतु आपने जिन जिन तीन महिलाओं का पाँच पंचों में हाथ पकड़ा है ये आपके होते हुए भी विधवापन भाग रही हैं। आप देखते नहीं। अपने दरिद्री यजमानों की गाढ़ी कमाई का पैसा आप कुकर्मों में लुटा नहे हैं। ये आप को इष्ट मित्र, ये आपके नौकर चाकर और ये आपकी रंडी भुंडी, सब जब तक आपके पास पैसा है तब तक के साथी हैं। आपके पूर्व पुरुष वास्तव में कमाई ऐसी छोड़ गए कि कभी आप भूखों नहीं मर सकते। परंतु जाने रहिए यह आपका धन दौलत, ये आपके संगी साथी और यह आपका ठाठ आपके साथ नहीं जायगा। आप जब पुण्य नहीं बटोरते हैं तब आप जो कुछ पूर्व जन्म का संचित लाए हैं उसें भी लुटाकर खाली हाथों जायँगे। जो इस समय आपको ठगते हैं वे