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भाग लेने का श्रम उठाना पड़ेगा और न अध्वर्यु होता ब्रह्मा बनने- वाले नई टकसाल के ब्राह्मणों को दक्षिणा हमारे देवताओं के पास यज्ञ की अग्नि डाक बनकर जैसे हवि पहुँचाती है वैसे ही सूर्यनारायण श्राद्ध का पिंडादि पहुँचाने में पोस्ट बन जाते हैं।"

"परंतु आपके पितर जब अपने अपने कर्मों के फल स्वयं- भोग रहे हैं फिर श्राद्ध करने से लाभ ही क्या?"

"बड़ा भारी लाभ है। यदि लाभ न हो तो मुसलमान और ईसाई आपने पूर्वजों की कवरों पर पुष्प क्यों चढ़ावें? कबरों के निकट बैठकर घंटों तक रोबें नहीं। इसलिये केवल श्राद्ध करनेवाले हम ही नहीं हैं, संसार की समस्त जातियां किसी न किसी रूप में श्राद्ध अवश्य करती हैं। श्राद्ध श्रद्धा से बना है। करनेवाले के अंतःकरण में यदि श्रद्धा हो, अपने पितरों पर वास्तविक भक्ति हो तो जिसके लिये किया जाय उसको और करनेवाले को, दोनों को फल मिलता है, उसकी मानसिक शक्ति बढ़ती है और उसका प्रभु-चरणों में प्रेम बढ़ता है। यह बात अनुभवगम्य है। करके देख लीजिए।"

"व्यर्थ ढकोसला है। जैसे मूर्तिपूजा ने देश को चौपट कर दिया वैसे ही श्राद्ध भी कर रहा है। दरिद्री देश है। फिजूल ठगा जाता है! यदि श्राद्ध का फल अवश्य ही मिलता हो तो कभी हमारे पूर्व जन्म के पुत्र द्वारा श्राद्ध किए जाने पर हमारा पेट बिना खाए इस जन्म में भर जाना चाहिए। डकारें आनी चाहिएँ।"

आ०हि० -- १४