पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२१७

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"बेशक बिना खाए पेट भर जाता है, ढकारें आने लगती है।" इतने ही में दर्शकों ने एक स्वर से, उच्चस्वर से कहा -- "हाँ आती हैं। कभी कमी आती हैं।" और इसका मध्यस्थ महाशय ने भी अपने अनुभव से अनुमोदन किया। तब पंडित जी फिर कहने लगे --

"नहीं मूर्तिपूजा ढकोसला नहीं है। उसने देश का अप- कार नहीं, उपहार किया है। इसके लिये बहस करने से विषयांवर हो जायगा और तुरंत ही मध्यस्थ महाशय मुझे रोक देंगे किंतु इतना कहे बिना मैं आगे नहीं बढ़ सकता कि बिना मूर्ति के ध्यान नहीं हो सकता। इष्ट का आराधन करने के लिये लक्ष्य की आवश्यकता है। निराकार का लक्ष्य नहीं। और यदि निराकार भी माना जाय तो रेखागणितवाले निरा- कार बिंदु को बोर्ड पर साकार लिखे बिना कदापि आगे नहीं बढ़ सकते। जिसकी लंबाई चौड़ाई नहीं वह बिंदु, बिंदु की यही परिभाषा है किंतु खड़िया से बोर्ड पर जो बिंदु लिखा जाय उसका कम से कम आकार अवश्य होता है और अक्षर जो लिखे जाते हैं वे भी निराकार के आकार है।"

पंडित जी के मुख से इस विषय में और भी कुछ निकलने- वाला था किंतु मध्यस्थ महाशय ने -- "हाँ सत्य है। परंतु विषयांतर में चले जाइए।" कहकर उनको रोका तब वह फिर बोले --

"अच्छा मूर्तिपूजा के विषय में यदि आपको संदेह हो तो