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स्वर्गीय पंडित अंबिकादत्त व्यास कृत "मूर्ति-पूजा" पुस्तक देख लीजिए।"

"अपने युक्तियों ही युक्तियों से हमारा समय नष्ट कर डाला किंतु वेदादि शास्त्रों का प्रमाण अब तक एक भी देते न बना।"

"नहीं साहब, एक नहीं। दस बीस! अनेक! आप रामायण को मानते हैं। उसमें अगर भगवान् मर्यादापुरुषोत्तम रामचंद्र ने अपने पिता का श्राद्ध किया है। महाभारत में एक जगह नहीं, अनेक स्थलों पर ऐसा उल्लेख है। भगवग्दोता को तो आप मानते है ना? उसमें भगवान् श्रीकृष्ण- चंद्र से स्वयं अर्जुन ने कहा है। अच्छ -- "लुप्तपिंडोदक- किया:' का क्या मतलब है? खैर अनुस्मृति तो आपका प्रमाण ग्रंथ है। उसमें लिखा है कि --

ॠषिप्रज्ञं देवयज्ञ भूतयज्ञं च सर्वदा,
तृयज्ञं पितृयज्ञ च यथाशक्ति न हापयेत्॥
अध्यापनं ब्रह्मयज्ञ पितृयज्ञस्तु तर्पणम्।
होमो देवा बलिर्भौतो वृयज्ञोऽतिथि पूजनम्॥
स्वाध्यायेनार्चयेतर्धीन होमैर्देवान्यथाविधि।
पितृच्छाद्धैश्च नृनन्नैर्भूतानि बलिकर्मणा॥
कुर्यादहरहः श्राद्धमन्नाद्येनोदकेन वा।
पयोमूलफलैर्वापि पितृभ्यः प्रीतिमावहन्॥"