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मर्मानुवाद
"ॠषियज्ञ, देवयज्ञ, भूतयज्ञ, नरयज्ञ, पितृयज्ञ -- इन्हें सर्वदा
यथाशक्ति करते रहना चाहिए। विद्या पढ़ाना ब्रह्मयज्ञ,
तर्पण पितृयज्ञ देवयज्ञ, होम, भूतयज्ञ बलि और नरयज्ञ अतिथि-
पूजन है। ऋषियों का अर्चन स्वाध्याय से, देवताओं का
यथाविधि होम करके, पितरों का श्राद्ध द्वारा, मनुष्यों का
अन्नदान में और भूतों का बलि प्रदान से पूजन करना चाहिए।
अन्न से, जल से, दूध से, मूल से और फल से पितरों की प्रीति
सम्पादन करने के लिये श्राद्ध नित्य प्रति करना योग्य है।"
"नहीं! नहीं! असली ग्रंथों के ये बचन नहीं हैं। स्वार्थियों ने पीछे से बढ़ा दिए होंगे।"
"नहीं! जनाब नहीं! पीछे से नहीं बढ़ाए है! पीछे से बढ़ाने का प्रमाण क्या है ? यों "मीठा मीठा गप गप और क. डुवा क. डुवा थू थू" करने से काम नहीं चलेगा। ग्रंथ में अपने मतलब के वचन प्रमाण मानना और जिनसे अपनी हार होती हो उन्हें क्षेपक बतला देना अन्याय है। कोई भी बुद्धिमान् इसे स्वीकार नहीं करेगा।"
इस पर फिर मध्यस्थ महाशय ने कहा -- "वास्तव में यथार्थ है। यदि इन वचनों को नहीं मानना था तो मनु- स्मृति को ही क्यों माना?" तब फिर पंडित जी बोले --
"अजी साहब, केवल मनुस्मृति में क्यों ये लोग तो
अपने बनाए ग्रंथों में भी क्षेपक बताने लगते हैं। सत्यार्थ-