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तब आप लोगों में मानसिक शाक्ति बिलकुल नहीं! शायद माता पिता जब अति वृद्ध हो जायँ तब उन्हें आप खाने को भी न दें। क्योंकि उन्हें देने से कुछ लाभ नहीं। बेशक आप लाभ के बिना बात भी नहीं करते। मुशकिल तो यह है कि उन लाभों का सुझाने के लिये कोई शिक्षक भी परदेशी होना चाहिए जो आपको बतलावे कि गले का कफ हटाने को आचमन और सुस्ती छुड़ाने को मार्जन किया जाता है। और जब आपसे पूछा जाय कि गले का काफ हटाने के लिये आच- मन की जगह लोटा भर पानी पी लो और यदि स्नान से सुस्ती न छूटी तो मार्जन से क्या छूटेगी तो आप बगलें झाँकने लगें। खैर इसी तरह कोई दिन कोई न कोई श्राद्ध का भी ऐसा ही मतलब समझानेवाला मिल जायगा, तब तक किए जाइए। छोड़िए मत। "अकरणान्मंदकरण श्रेय:।"

"अच्छा आप ही बतलाइए"

"हमें तो जो कुछ बतलाना था बतला दिया। वेद मत से, जिस सिद्धांत के अनुकूल धर्म समझकर हम लोग करते हैं सो सब कह दिया। हमारी पूर्व पुरुषों पर भक्ति है इसलिये करते हैं, इस सिलसिले में उनके गुणों का स्मरण करके अपना मन पवित्र करते हैं, उनके गुणों का अनुकरण करने का प्रयत्न करते हैं और अपनी श्रद्धा के अनुसार शास्त्र के प्रमाणों से उनका उद्धार करने के लिये करते हैं। जैसी श्रद्धा वैसा फल। फल जो मिल रहा है प्रत्यक्ष है, अनु-