पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२२४

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भवगम्य है। अभ्यास करके देखिए। चित्त की एका- ग्रता चाहिए।"

इस तरह के वाद विवाद के बाद मध्यस्थ महाशय ने जो फैसला सुनाया उसका सार यही है --

"श्राद्ध युक्ति प्रमाणों से, वेदादि ग्रंथों के मत से सिद्ध हो गया। नोटिस के अनुसार एक हजार रुपया पंडित प्रिया- नाथ को दिला दिया जावे।"

इस पर पंडितजी ने मध्यस्थ को, प्रतिपक्षियों को और श्रोताओं को धन्यवाद देते हुए कह दिया कि "यह एक हजार और एक हजार रूपया मेरी ओर से, यों दो हजार रुपया यहाँ ही गयाजी में किसी लोकोपकार के लिये है।" ऐसा कहते ही "वाह वाह! धन्य! शाबाश!" के गगनभेदी उच्चा- रण के साथ सभा विसर्जित हुई।


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