पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२३३

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देखते हुए कर्तव्य यही मालूम होता है कि जो काम किया जाता है उसमें तीन चार बातों की वृद्धि की जाय। एक जहाँ तक बन सके प्रत्येक गृहस्थ अपना धर्म समझ कर शक्ति के अनुसार एक दो गाएँ अवश्य आपने घर में रक्खे। दूसरे देशी रजवाड़ों में जैसे गाँव पीछे थोड़ी बहुत भूमि गोचारणा के लिये अवश्य छोड़ी जाती है उसी तरह सरकारी राज्य की प्रजा खरीद कर इस काम के लिए जमीन छोड़ दे और उसका जो सरकारी कर हो वह संयुक्त पूँजी के व्याज में से हर साल अदा कर दिया जाय। ऐसा करने से गवर्मेंट भी कुछ रिआयत कर सकती है। तीसरे जो हिंदू कमाई को गाय वेच उसकी जातिवाले उसझा हुक्का पानी बंद कर दें। और चौथी और सबसे बढ़ कर यह कि अच्छा दूध तथा घी मिलने के लिये, गोवंश की वृद्धि के लिये, गायों की नसल सुधार कर खेती को लाभ पहुँचाने के लिये और ऐसे ऐसे अनेक लाभों के लिये कंपनियां खड़ी की जाँय। इस उधोग से गवर्मेंट भी प्रसन्न होगी और धर्म वृद्धि के साथ देश का उपकार भी होगा। कांता भैया का इरादा इस उद्योग का नमूना दिखला देने का है। उसने आरंम्भ भी कर दिया है। सफलता परमेश्वर के हाथ है।"

इस तरह बातें समाप्त होते होते रेल की घंटी हुई और ये लोग टिकट लेकर कलकत्ते का मार्ग छोड़कर सीधे जग- दीशपुरी जा पहुँचे।

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