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प्रकरण--४६
कर्म-फल का खाता

गया के स्टेशन से ही पंडित, पंडितायिन और गोड़बोले ड्योढ़े दर्जे की गाड़ी में और और साब तीसरे दर्जे में सवार हुए। जब ये आस्तिक हिंदू थे तब ट्रेन में खाना पीना बंद और मार्ग कुँओं का अभाव होने से नलों का पानी पीना भी बंद। अस्तु यह तो इस पार्टी की साधारण बात भी। मार्ग में केवल एक के सिवाय कोई विशेष घटना नहीं हुई किंतु वह एक भी ऐसी हुई जिसने समस्त मुसाफिरों के कान खड़े कर दिए। गया से चार पाँच स्टेशन आगे बढ़ने पर तीसरे दर्जे की गाड़ी में एक मेहतर आ बैठा। वह वास्तव में मेहतर था अथवा जगह करके आराम से पैर फैलाकर सोने के लिये बनाया गया था, सो नहीं कहा जा सकता क्योंकि आज- कल ऐसी नीचता बहुधा देखी जाती है। मैं इसे नीचता इसलिये कहता हूँ कि येही हिंदुओं के गिराब के लक्षण हैं। संसार का नियम है कि समस्त जातियाँ नीचे से ऊपर की और जा रही हैं। भारतवर्ष में ही जब शूद्र और अति शूद्र तक द्विज बनने का प्रयत्न करते हैं तब द्विज स्वार्थवश थोड़े से आराम के लिये यदि भंगी बन जाय तो उसे क्या कहें?