पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२३५

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अस्तु जिस गाड़ी में वह चांडाल घुसा उसी में भगवान- दास, भोला आदि बैठे हुए थे। बूढ़े बुढ़िया और उनके डर से गोपीबल्लभ भले ही चुप रहा किंतु भोला से ऐसा अधर्म सहा न गया। उसने तुरंत ही उठकर मेहतर को लाल लाल आँखें दिखलाई और धक्के देकर गाड़ी से निकाल दिया। इस पर बहुत शोर गुल मचा, आपस में गाली गलौज का अवसर आया और अंत में हाथा पाई भी हो पड़ी। स्टेशन के नौकर चाकर अपना काम काज छोड़कर वहाँ आ खड़े हुए, मुसाफिरों का झुंड का झुंड वहाँ इकट्ठा हो गया और बीच बचाव करने के लिये पुलिस भी आ डटी। पुलिस जिस समय दोनों को गिरफ्तार करके चालान करने की तैयारी करने लगी तब पंडित जी भी इस संदेह से उतरकर उनके पास पहुँचे कि "कहीं छापने साथियों में से कोई न हो।" उनको विशेष संदेह भोला पर ही था क्योंकि जैसा वह गरीब था वैसा ही उजड्ड भी था। उसकी सूरत देखते ही उनका संदेह सचाई में बदल गया। उन्होंने क्रोध में आकर भोला को बहुत ही डाँट-डपट बतलाई। जिस समय वह भोला को फटकारते और बीच बीच में मामला न बढ़ाने के लिये पुलिस से चिरौरी कर रहे थे उनकी एकाएक नजर उस मेहतर पर पड़ी। देखते ही एकदम वह आग बबूला हो गए। क्रोध के मारे इनके होंठ थरथराने लगे, शरीर काँपने लगा और रोंगटे खड़े हो आए। उन्होंने अपने आप को तुरंत हो सँभाला।