पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२३८

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ही कुकर्मों में प्रवृत्त है। यदि वह वाल्मीकि, नारद, शवरी, रैदास आदि भगवदीय सज्जनों का सा सुकर्म करे तो उसे कौन गिरा सकता है? परमेश्वर के लिये सब समान हैं। उसके यहाँ जाति-पाँति का कुछ भेद नहीं। 'जाति पाँति पूछै नहिं कोई, हरि को भजै सो हरि का होई'।"

"अच्छा , तब आप भी मेरी तरह कर्म से जाति मानते है। कर्म से वर्ण माननेवालों से कुछ वहस नहीं। वास्तव में कर्म से ही जाति है। अंतःकरण भी इसी को स्वीकार करता है।

"नहीं जनाब, केवल कर्म से ही जाति नहीं। अच्छी जाति में, कुल में जन्म लेकर मनुष्य को अपने वर्णाश्रम धर्म के अनुसार कर्म करना चाहिए।"

"तब आपके बतलाए हुए भक्त जन केवल कर्म करने ही से क्योंकर परम पद के प्राप्त हुए? यहाँ से आपकी गोटी गिर गई?"

"गिरी नहीं! जरा समझकर सुनिए। कभी गिर नहीं सकती। भगवान् के यहाँ साहूकारों की तरह हमारा खाता खुला है। जो हम शुभ कर्म करते हैं वे उसमें जमा होते है और अशुभ कर्म हमारे नाम लिखें जाते हैं। यह हिसाब एक जन्म का नहीं, अनेक जन्मों का इकट्ठा है। केवल एक ही, वर्तमान जन्म के कर्मों से हिसाब न लगाइए। यदि एक ही जन्म का हिसाब लगाकर आप किसी को