पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२७

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कर ही उसे रोकने के लिये विवाह, यज्ञ और सुराग्रह में उनके लिये व्यवस्था की गई है। क्यों महाराज! अब तो ध्यान में आया?"

"आया यजमान? आया!!"

"अच्छा खैर! यदि थोड़ी देर के लिये यह भी मान लिया जाय कि आप लोगों के लिये धर्मशास्त्रकारों ने विधि दे दी है तो क्या जिनका मांस आप लोग खाते हैं उन्हें कष्ट नहीं होता। आप उनसे बलवान् हैं इसलिये, क्षमा कीजिए, आप उन्हें मार खाते हैं। भला आपसे अधिक बलवान् सिंह व्याघ्रादि यदि आपको खा जायँ तो आपको मंजूर है अथवा नहीं?" ऐसा कहते कहते प्रियानाथजी ने उनके पैर में जरा सी सुई चुभोई। दर्द होते ही कथाभट्टजी उछल पड़े। "हैं! हैं! यजमान! यह क्या करते हो?" कहकर वह "सी सी सी सी!" करने लगे और तब फिर पंडित प्रियानिथजी बोले -- "क्यों आप तो इस जरा सी सुई की जरा सी नोक चुभते ही सी सी करने लगे और जिन बिचारों का मांस खाया जाता है उनका प्राण लेने में भी आपको दया नहीं! राम राम!!"

"हाँ धर्मावतार सत्य है! वास्तव में आपने मुझे बड़ा उपदेश दिया । मैं आज भगवती भागीरथी को, तीर्थराज प्रयाग को और ब्राह्मण विद्वान् को साक्षी कराकर प्रतिज्ञा करता हूँ कि आज से कभी, प्राण-संकट पड़ने पर भी, ऐसी वस्तुओं का ग्रहण नहीं करूँगा और अब तक जो किया उसके लिये