पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(२१)


पश्चात्ताप करूँगा। भगवती से नित्य प्रार्थना करूँगा और शास्त्र-विधि से प्रायश्चित्त करूँगा।"

"धन्य महाराज! आप वास्तव में सज्जन हैं। आपकी प्रथम सज्जनता तो इसी में है कि आपने इस कार्य को स्वीकार कर लिया क्योंकि जो मांस मछली खानेवाले हैं उनमें से अधि- कांश जानते हैं कि यह काम बुरा है। बुरा समझकर भी जीभ के लालच से करते हैं और लोकलज्जा से उसे छिपाते हैं। फिर आपने मेरी सम्मति मानकर बड़ा उपकार किया।"

गौड़बोले में इनकी बात का अनुमोदन किया और फिर कथा आरंभ होकर समाप्ति के बाद उन पंडितजी ने घर जाकर अपनी प्रतिज्ञा का पालन किया।


--------