पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/३१

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मृदु हास्य के साथ प्रियंवदा ने इस बात का अनुमोदन किया और नेत्रों की सांकेतिक भाषा में दिखला दिया कि -- "छोटे भैया मेरे भी छोटे भैया हैं। भाई से भी बढ़कर प्यारे हैं।" आजकल की सी उच्छृंखल ललनाओं के समान प्रियंवदा मुखरा नहीं थी, यधपि वह गौड़बोले के आगे फिरती डोलती थी। जब यात्रा में दिन रात का साथ था तब चारा भी नहीं था किंतु उन्होंने इसका मुख नहीं देखा। कभी इसने उनके सामने किसी से बातचीत नहीं की। इस समय भी दोनों के लोचल-पद्मों की उलझन चौखट की आड़ में से हुई। प्रियंवदा कमरे के भीतरी किवाड़ की ओट में और उसके प्राणनाथ बाहर। बादल में से छिपकर बार बार निकलनेवाले चंद्रमा की तरह प्रियतम को प्रेयसी के दर्शन का अवश्य आनंद प्राप्त हुआ किंतु गैड़बोले जैसे सात्विक ब्राह्मण की दृष्टि भी यदि उधर पड़ जाय तो "राम राम!" उस पर सौ घड़े पानी पड़ जाय। उसका भाव प्रियंवदा के लिये माता का सा था। गोस्वामी तुलसीदासजी ने "रामायण मानस" में अपनी आराध्य देवी माता जानकी के नखशिख का वर्णन न किया, इस बात को बहुत "खूबसूरती" के साथ टाल दिया। उनका यह कार्य प्राचीन कवियों से भी "सबकत" ले गया। यही उसकी धारणा थी और जब कभी प्रसंग आता वह इस कार्य के लिये गासाई जी की प्रशंसा किए बिना नहीं रहता था।