पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(३७)

आज इनका दौरा किले के लिये था। वहाँ जाकर इन्होंने दुर्ग की छटा देखी जिसे प्रकाशित करने से तो इस उपन्यास कर लगाव नहीं। हा! अक्षयबट की गुहा में पहले जो घोर अंधकार रहता था और इस कारण वहाँ के पंडे यात्रियों से से गनमना ऐंठते थे, पवन के अभाव से दिन दहाड़े अंधकार में दक्ष घुट घुटकर जो यात्री दु:ख पाते थे उन पर कृपा करके बगवर्मेंट ने जब वहाँ प्रकाश पहुँचाने का अच्छा प्रबंध कर दिया तो अवश्य ही धन्यवाद का काम किया। पंडों ने आज इनसे भी बहुत धींगाभस्ती मचाई। पहले इन्हें जाने ही से रोका और फिर माँग मूँग में इन्हें तंग कर डाला। खैर, जैसे तैसे ये लोग भीतर पहुँचे।

भीतर जाने के अनंतर वहाँ का दृश्य देखकर इन लोगों के मन में जो भाव उत्पन्न हुए अन्डका निष्कर्ष यह है। पंडितजी बोले --

"इस अक्षयवट के (प्रणाम करके) लोग अनादि काल का बतलाते हैं। होगा। हम प्राचीन बातों की खोज करनेवाले "ऐंटीक्वेरियन" नहीं जो इस बात की तलाश के लिये सिर मारते फिरे! यदि यह हजार दो हजार अथवा लाख वर्षों का निकल आवे तो अच्छी बात है। अनजान आदमियों की भक्ति चमत्कार से होती है किंतु हम मूर्ति में चमत्कार देखने की आवश्यकता नहीं समझते। मूर्ति जिसके लिये निर्माण की जाय उसके गुणों की याद दिलाने का वह साधन है। परमेश्वर चाहे साकार हो अथवा निराकार, वह तो जैसे अधिकारी