पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/४६

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है वा नहीं? यदि उत्पन्न होता है तो अपने मन की पट्टी पर विचार की लेखनी से प्राचीन दृश्य का चित्र तैयार करो। वह चित्र अमिट होगा और ज्योंही तुम्हारी शक्ति अमिट हुई अपना उद्धार समझो, क्योंकि विचारशक्ति की विमलता दृढ़ता और दूरदर्शिता ही ईश्वर के चरणों में पहुँचा देने का पुष्पक विमान है। शस्त्र के बल से नहीं, धन की ताकत से नहीं, सेना के समुदाय से नहीं, शरीर की सामर्थ्य से नहीं, विचार शक्ति से, केवल "विल पावर" से आदमी इंद्र के सिंहासन डिगा देता है । भारत के, विलायत के, जिन महानुभावों के हाथ से संसार का उपकार हुआ है, केवल उनकी इसी शक्ति से। इस शक्ति के साथ मंत्रों का बल है और यही प्राचीन समय के अस्त्र हैं। सार्वभौम परीक्षित के पुत्र जनमेजय के सर्पयज्ञ में तक्षक को लिए हुए इंद्र का सिंहासन केवल इसी से यज्ञभूमि के ऊपर आ लटका था।"

'बेशक, ठीक हैं, परंतु देखिए न! इधर इधर! दहनी और! भगवान् यमराज की मूति! अहा, कैसी भयानक है! जब मूर्ति के दर्शन करने ही पर शरीर में कँपकँपी होती है तब यदि प्रत्यक्ष दर्शन हो जाय तो, ओ हो! क्रोध से नेत्र फैल फैलकर निकले पड़ रहे हैं। महाराज की सवारी का भैंसा भयभीत होकर आगे बढ़ने के बदले पीछे को हटा रहा है। एक हाथ में कालपाश है और दूसरे में खड्ग। मानों इस पाश से पापी को बाँधकर इस खड्ग से उसकी गर्दन भारी