पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/४७

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जायगी। इसी लिये खड्ग ऊँचे के उठाया जा रह है। परंतु आज इतना कोप किस पर है? एक छोटे से बालक पर! ब्राह्मण बटु पर! जिस आतंक से भयभीत होकर बड़े बड़े भी काँपा करते हैं उसक एक बालक पर, निरे बालक पर, इतना क्रोध? ओ हो! अच्छी कथा याद आ गई। यह बालक ही महर्षि मार्कडेय हैं, बड़ ढीठ है। बालक क्यों है। भगवान् शङ्कर की मूर्ति से लिपटकर इसमें यमराज के भी अधिक बल आ गया। अवश्य आज ऐसा ही बल है। बल है तब ही तो उस यमराज की ओर, जिसके दर्शन से ब्रह्मादिक देवता तक घबड़ाते हैं, आज देख देखकर हँस रहा है, हँस क्या रहा है मानों चिढ़ा रहा है। कह रहा है कि अब मैं जगत् के कल्याण करनेवाले भगवान् शंकर की शरण में हूँ। एक महर्षि के वरदान से मैं सात दिन, मनुष्य के नहीं, ब्रह्माजी के सात दिन सात सौ चतुर्युगियों तक अमर हूँ। आप मेरा बाल भी बाँका नहीं कर सकते।"

"वाह! शरणागत-वत्सलता का कैसा ज्वलंत उदाहरण है। ब्राह्मणों की शक्ति का सर्वोत्कृष्ट प्रमाण! एक वह समय था जब ब्राह्मणों में अपने तपोबल से, अपने सदाचार के बल से, और अपनी मानसिक शक्ति से यमराज की आज्ञा तक उलट देने की क्षमता थी। यदि ब्राह्मण निर्लोभ होकर, सदाचारी बनकर अब भी केवल कंदमूलादि से निर्वाह करता हुआ तपश्चर्या करे तो उसके लिये वैसी शक्ति आना कुछ दूर नहीं,