पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/४८

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और जातियों की अपेक्षा निकट हैं, क्योंकि उसके अंत:कारण में अपने पुरूषों की उस अनंत शक्ति का लेश है। उस बीज में अंकुर लगकर बड़ा वृक्ष बन सकता है।"

"परंतु देखिए। इस कथा ने यह स्पष्ट कर दिया कि जिनमें शापानुग्रह करने की सामर्थ्य थी वे भी परमेश्वर के नियम का परिवर्तन ई कर सकते थे। उस ब्राह्मण शरीर के आशीर्वाद से मार्कडेय की आयु मनुष्य के सात दिन में ब्रह्मा के सात दिन की हो गई, किंतु रहे सात के सात ही।"

"हाँ! अवश्य!" कहकर गैड़बोले महाशय ने यह संवाद समाप्त किया और यों इनके मुकाम र पहुँचने के साथ ही, एक सप्ताह में प्रयाग की यात्रा भी समाप्त हो गई। यहाँ आकर इन लोगों ने भोजनादि से निवृत्त होकर अपना असबाब बाँधा। बाँध बाँधकर जिस समय स्टेशन पर जाने के लिये गाड़ियों में सामान लादा जा रहा था उसी समय त्रिवेणी-तट का यात्री पूछता पूछता पंडितजी से मिलने के लिये आया। पंडितजी ने उसे अवश्य परदेशी समझ लिया था किन्तु था वह वहीं का तीर्थगुरु ब्राह्मण। उसका नाम था नारायण। बस नारायण से पंडितजी की जो बातचीत हुई उसका सार यह है --

"तीर्थ के भिखारियों की दशा देखकर यहाँ एक दीनशाला खोलने की आवश्यकता जान पड़ती है। केवल यहीं थे प्रत्येक तीर्थ में। ऐसा करने से जो वास्तव में दीन हैं