पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/४९

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उनका भले प्रकार भरण पोषण हो जायगा और जो वनावटी हैं वे लज्जित होकर काम धंधे में लगेंगे यों यात्रियों का भी पिंड छूट सकता हैं। वे तीर्थ पर आकर दान अवश्य करें, यथाशक्ति करते ही हैं, परंतु उसके द्वारा करने से उन्हें भी आराम मिलेगा। तीर्थगुरूयों से बालकों की शिक्षा के लिये जो पाठशाला है उसमें मेरी और से (नोट देकर) यह आप जमा कर दीजिए। पाठशाला ऊँचे पाए पर स्थापित होनी चाहिए। बैलों और मछलियों की दुर्दशा पर प्रयाग में आंदोलन कीजिए। सबसे बढ़कर उपाय यही है कि जो धर्मसभा यहाँ की अस्त हो गई है। उसका फिर से उदय हो। राजभक्ति का उसका मुख्य उद्देश्य है और रहना भी चाहिए। यदि धर्मसभा के प्राचीन मेंबरों को फिर जागृत किया जाय तो सब ही दुर्लभ कार्य सुगम और सरल हो सकते हैं।"

"हाँ ऐसा ही होगा!" कहकर नारायणप्रसाद अपने घर गए और ये लोग गाड़ियों पर सवार होकर प्रयाग के रेलवे स्टेशन पर जा पहुँचे ।"


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