पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(४४)


सा प्रेम देखकर भी स्त्रियों की लड़ाई से कभी आपस में झगड़ा खड़ा न होने पावे, इस भय से अपनी स्थिर और चल जीविका के दो बराबर हिस्से कर मरे थे, परंतु बड़े भाई की ओर से सब कारबार के मालिक छोटे भैया थे। इसी कारण बड़े भाई की आज्ञा से उन्हें रेलवे की नौकरी छोड़कर पिता का स्वर्गवास हो जाने के वाद घर में ही रहना पड़ा था। पंडित पियानाथ एक ऊँचे दर्जे पर गवर्मेंट के डाक विभाग में नौकर थे और पहले प्रकरण में हमारे पाठकों ने जब उनको आबू पहाड़ पर देखा तब कुछ ऐसे ही काम के लिये उनका वहाँ जाना हुआ था। वह जहाँ रहते प्रियंवदा को साथ रखते थे। दौरा करते समय पर्देदार औरत को साथ रखने में उन्हें कुछ कष्ट भी उठाना पड़ता था किंतु यदि छाया शरीर से अलग रहे तो प्रियंवदा पति से जुदी रहे -- यही उसका उत्तर था। इनके घर में मुसलमानों, कायस्थों और क्षत्रियों का सा ऐसा पर्दा भी नहीं था जिसके मारे सुकुमार ललनाएँ घर के जेलखाने में दम घुट घुटकर मर जायँ और ऐसे बेपर्द भी नहीं जिनकी महिलाएँ मुँह खोलकर पर-पुरुष से हँसी मजाक करें, पुरुष-समाज में खड़ी हाकर लेकचर फटकारें। पर्दा इस प्रकार का था कि घर के भीतर जनाने में दस पंद्रह वर्ष के लड़कों के सिवाय, खास खास नातेदारों के सिवाय कोई न आने पाने, स्त्रियां भी जो आवें वे ऐसी आवें जिनका चलन बुरा न हो। बाप भाई इत्यादि नातेदारों को