पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/५२

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भी युवतियों से एकांत में मिलने का अवसर न मिलने पावे । जब जाति बिरादरी में जाने के लिये, दर्शनादि के लिये मंदिर या तीर्थो में नारियों को जाने की आवश्यकता पड़े तब वे अदब के कपड़े पहनकर निकलें ताकि मार्ग में किसी को घूरने का मौका ना मिले। उस दिन पति के साथ आवू पहाड़ के "सनसेट पाइंट" पर प्रियंवदा गई और वहां इसे कोई आदमी मिला भी नहीं किंतु वह जब तक जीवित रही सदा ही समय समय पर पति से इस बात के लिये उलहना दिया करती थी, और अब वह इस बात का जिक्र छेड़ती तब ही पति राम भी आबू के सन्यासी से एकांत में पुत्र माँगने के मालूम क्या क्या अर्थ लगाकर उसे चिढ़ा दिया करते थे। इससे कभी मान और मान से बढ़ते बढ़ते कभी प्रेम-कलह तक हो जाया करता था और जब कभी वह कसमें खाकर, सुबूत दे देकर अपनी सचाई सिद्ध करती तब पंडितजी हँसकर ताली पीट दिया करते थे, क्योंकि उसके पास सबसे बढ़कर सुबूत यह था कि बुढ़िया दुलरिया जो इनके यहाँ पचास वर्ष से नौकर थी वह उस समय मौजूद थी, वह उस साधु से बातचीत करने में थी और उसकी भलमासाहत का सिक्का था। कोई छोटी मोटी तो क्या परंतु पंडितजी की माता तक में यदि वह कोई बात अनुचित पाती तो बेधड़क कह दिया करती थी और इस पर तुर्रा यह कि जब तक दिन भर की खबर वह अपने 'पिरिया लल्ला' को न सुना देती तब तक उसका खाना हजम