पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/५४

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जमींदारी के दस विश्वे इनके पिता के खरीदे हुए थे । दो कुओं पर चाही खेती इनके घर में मुद्दत से चली आती थी । बस यही इनकी जीविका का चिट्ठा है, यही इनके घर की स्थिति का चित्र हैं। कांतानाथ को जब नौकरी छोड़कर घर पर ही रहना पड़ा, और एक बूढ़े मुनीब के मर जाने पर इन्होंने जो मुनीब दूसरा नियत किया उसकी नीयत खराब देखकर इन्हें जब झख मारकर रहेना पड़ा, तब यदि पुराने काम को सँभालने के सिवाय यह अपने कारबार की कुछ भी उन्नति न करें, केवल लकीर के फकीर बनकर पड़े रहें तो इन्होंने अँगरेजी पढ़कर ही क्या किया? पंडित प्रियानाथ ने अँगरेजी में एम० ए० पास किया था और कांतानाथ भी बी० ए० तक पढ़े हुए थे किंतु इनके पिता को डिगरियाँ प्राप्त कराना जितना पसंद नहीं था उतना ही उनके विचार से व्यावहारिक ज्ञान की आवश्यकता थी। इसलिये उन्होंने घर में रखकर केवल संस्कृत का ही इन्हें अध्ययन कराया हो सो नहीं, वरन् "हिंदू गृहस्थ" में लाला ख्यालोराम के छोटे पुत्र को जिस प्रकार की शिक्षा दी गई थी उसी तरह की शिक्षा और उसी गुरू से दिलवाने में पंडित रमानाथजी ने कोताही नहीं की थी।

ऐसे ऐसे अनेक कारणों से दोनों भाइयों के अंत:करण में कृषि और व्यापार के जो तत्व धँसे हुए थे उन्हें काम में लाने के लिये ही कांतानाथ से नौकरी का इस्तेफा दिलवाया गया था और उन्हीं में प्रवृत्त होने के लिये अब इन्हें अवसर