पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/५५

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मिला। इन्होंने सबसे पहल काम यह किया कि खेती की उन्नति के लिये पश्चिमी साइंस ने आजकल जो नए नए आविष्कार किए हैं उनका अपने देश की परिस्थिति से मिलान किया। "शर्ङ्गधर व्रज्या" इत्यादिक जो संस्कृत ग्रंथ इस विषय में पूरे या अधूरे मिलते थे, जो मुसलमानों के हम्मान में जल जाने से बचे बचाए इनके हाथ आए उनका अवलोकन कर इन्होंने खेती के काम का सुधार करने के लिये अपनी मुआफी की जमीन में नमूने के खेत तैयार करने का कार्य अरंम्भ किया। इस कार्य में इन्हें सफलता हुई या नहीं, सो अभी दिखला देने की अपेक्षा यात्रा से वापिस आने पर वह यदि स्वयं पंडितजी को दिखलावें तो पाठकों को इन पर रूष्ट न होना चाहिए। केवल इतना ही करके इन्हें संतोष हो गया सो नहीं। इन्होंने सुरपुर की जमींदारी के शेष दस विस्वे खरीद लेने का अवसर हाथ से नहीं जाने दिया और मुफ़ी के जमीदार के अचानक मर जाने से कर्जेवालों ने उन्हें उनके कुपूत बेटे बाबूलाल को घेरा और इसलिये उस गाँव के नीलाम होने का भी जब मौका आ पहुँचा तब इस विषय का बूढ़े भगवानदास से परामर्श करके "हाँ" अथवा "ना" को तार देने के लिये भाई साहब को लिखने में भी यह न चुके।

केवल इतना ही नहीं। इनकी आकांक्षा बहुत ही ऊँची आकांक्षा थी। ये ऐसे मनुष्य नहीं थे जिन्हें केवल जमींदारी के पुराने ढचरे में पड़े रहने से संतोष हो जाय, क्योंकि दाम