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प्रकरण--२९
घर की फूट

"बाबा को गए हुए अभी 'जुम्मा जुम्मा आठ दिन' हुए है। गया भी वापिस आने के लिये है। मर थोड़े ही गया है ओर न लौट आये। हट्टा कट्टा है। बहुतों को मारकर मरेगा। और रामजी उसे बनाए रखे। उसके जीने ही में भला है। 'बुढ़िया ने पीठ फेरी और चर्खे की हो गई ढेरी।' इतने ही दिनों में जब चौपट हो रहा है तब उसके सौ वर्ष पूरे होने पर न मालूम क्या गति होगी।" इस तरह करते हुए पनघट के कुएँ से घड़ा खैंचती हुई एक लुगाई जब ठंढी ठंढी आह खैंचकर रोने लगी तब दस बारह पनिहारियों ने उसे चारों ओर से घेर लिया। जिसके सिर पर भरे हुए घड़े का बोझा था वह वैसे ही खड़ी रह गई। जो पानी खैंच रही थी उसने खैंचना छोड़कर कान उधर और आँखें डोल की और लगाई। सबका काम हाथ का हाथ में, डोल कुएँ में और बरतन कंधे पर रह गए। "हैं हैं! क्या हो गया? गजब क्या हुआ? कह तो सही बोर हुआ क्या?" कह कह- कर सवाल पर सवाल पूछे जाने लगे। किसी ने उस औरत से सास का, किसी ने बहू का, किसी ने ननद और किसी ने भौजाई का नाता निकालकर उसके साथ सहानुभूति दिख-