पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/६७

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के लड़कें बहुओं को सुनाकर उनके घर के भीतर चवूतरे पर बैठा हुआ, हुक्का गुड़गुड़ाते गुड़गुड़ाते उनसे कहने लगा --

"चार ही दिन में तुम लोगों ने अपने पोत दिखला लिए । जिस दिन भगवान भैया आँखें मुँदेगा उस दिन तुम्हें कोई ठोकरे में भीख डालनेवाला भी न मिलेगा। तुममें इतनी भी अकल नहीं है? अपने ही हाथ से अपनी फजीती कर डाली। हमें क्या? हम तो वर्ष दो वर्ष के पाहुने हैं। भोगोगे अपनी करनी को और याद कर करके रोओगे! क्या तुम्हारा बाप सदा ही जीता रहेगा? चार पाँच बच्चों के बाप हुए अब तो कुछ शऊर सीखो। क्यों रे देवा! तेरी ऐसी मजाल जो तू अपने बाप के बराबर बड़े भाई को मारे? और कहाँ गई देवा की बहू! वही सब झगड़े की जड़ है। और बस्ती भर में उसी को लोग थुकते हैं! जिस दिन सुनेगी भली होगी तो जहर खाकर सो रहेगी! और कहाँ है वह मिरची! पकड़ ला रे मेवा! उसे पकड़कर मेरे सामने ला। मैं लगाता हूँ उसे जूते जिससे फिर नारद विद्या भूल जाय।"

"हाँ चाचाजी सच है! हाँ साहब सच है!" कहकर सेवा, मेवा और देवा ने अपनी गर्दनें झुका लीं। देवा की बहू ने जब खबर पाई तो बेशक उसे मरने के समान कष्ट हुआ। पन्ना की फटकार से देवा और देवा की बहू ने सेवा के पैर पकड़- कर क्षमा माँगी और जो जो गालियाँ देने में थे वे सबके सब लज्जित हुए और इस तरह बूढ़े के आने तक बंधी बुहारी रह गई।