पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/६९

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थी। प्रियंबदा के आने से उसका भी भय निकल गया, क्योंकि दो से तीन हो गई और तीसरी भी ऐसी जिसका आदमी साथ है।

इधर पंडित प्रियानाथ के बैठते ही किसी ने सिगरेट का बक्स और दियासलाई की डिबिया दिखाकर "लीजिए साहब" की मनुहार की है, न कोई अपने पानदान में से पान निकाल- कर इन्हें देने लगा है। कोई सोडावाटर की एक बोतल निकालकर "लीजिए थोड़ी सी और अपने दिल को 'रिफ्रेश' कार लीजिए" कहता हुआ हाथ इनकी ओर बढ़ा रहा है तो किसी ने "आपका दौलतखाना कहाँ है? मालूम होता है कि आप कोई गवर्मेंट सरवेंट हैं! कौन से डिपार्टमेंट में? अगर मेरा खयाल गलत न हो तो पोस्टल में?" इस तरह के सवाल पर सवाल करने आरंभ कर दिए हैं। पंडितजी ने एक का सिगरेट, दूसरे का पान और तीसरे का सोडावाटर धन्यवाद सहित वापिस कर दिया और अपनी जेब में से छालियाँ, इलायवी, लौंग, जावित्रो की डिबिया निकालकर सब लोगों की नजर की और थोड़ी थोड़ी लेकर तीने अदब के साथ माथे से लगाने के अनंतर खा गए किंतु जब चौथे के सामने पहुँची तब "थैंक्स! मुआफ कीजिए। मैं ऐसे कस्टम को डिसलाइक करता हूँ। इंडियंस ने बस ऐसे तकल्लुफ ही तकल्लुफ में कंट्री को बरबाद कर डाला" कहकर वह अँग- रेजी नावेल पढ़ने लगा। वे तीनों आदमी उसके ऐसे बर्ताव