पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/७२

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ओर देख देखकर मुसकुराए। किसी ने कहा -- "एक रंग ही की कसर है।" कोई बोला -- "शायद खड़िया पोतले से बदल जाय।" तीसरा बोल उठा -- "सो भण साबू थी पण बदलवानूं ग थी।" और तब पंडितजी इन लोगों को रोकते हुए कहने लगें -- "जाने दीजिए साहब! इन बातों को। किसी का जी दुखाने से हमारा लाभ ही क्या है?" यों इस विषय की बातचीत बंद हुई तब एक ने पूछा --

"मजहबी ख्याल से खाना तो एक नहीं हो सकता लेकिन जबान और पोशाक बेशक एकसा हो जाने की जरूरत है और सख्त जरुरत है। एक पोशिश हो जाना कौमियत की निशानी है और वगैर जबान एक होने के एक सूबे का आदमी दूसरे पर आपने दिली ख्याल जाहिर नहीं कर सकता और जब तक दिल न मिल जाय, हमदर्दी पैदा नहीं हो सकती।"

"हाँ! आपका कहना ठीक है। भाषा एक हो जाने की बहुत ही आवश्यकता है, परंतु यदि वस्त्र एक न हों तो मैं कुछ विशेष हानि नहीं समझता। भारतवर्ष एक ऐसा देश है जिसकी उपमा पंसारी की दूकान से दी जा सकती है। इसका जलवायु कई प्रकार का, यहाँवालों की रहन सहन बीसों तरह की, इनकी रीति भाँति सैकड़ों ढंग की और यहाँवालों का धर्म भी सबका एक नहीं। इसलिये एक प्रकार के वस्त्रों से सुविधा भी नहीं हो सकती और इसकी विशेष आवश्यकता भी नहीं है। क्योंकि युरोप और अमेरिका के एक प्रकार के

आ॰ हि॰ -- ५