पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/७६

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इसलिये हे माई! क्षमा मांगता हूँ। मरी इस धृष्टता का, मेरी इस दुर्वलता का, मेरी इस मूर्खता का अपराध क्षमा करो। माता, मैं तुम्हारा अपराधी हूँ। तुम्हारं चारणारविदों के निकट आकर भी दर्शन से वंचित रहता हूँ।" बस ऐसे स्तुति करते करते, भगवती दुर्गा का रतवन करते करते पंडितजी की आखों में से आँसू बहने लगे, और उनका इसी तरह ध्यान तब तक लगा रहा जब तक "मोगलसराय!" की तीन आवाजों ने इनको न जगाया।

और और मुसाफिर उसी गाड़ी में बैठे आगे निकल गए, इस यात्रापार्टी ने अवध रोहेलखंड की गाड़ी में सवार होकर कूच किया और जिस समय यह काशी स्टेशन पर पहुँचे गौड़- वोले इन्हें लेने के लिये पहले ही से स्टेशन पर मौजूद पाए गए। उनके कहने से अच्छा मकान मिलने की खबर पाकर इन्हें संतोष हुआ।


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