पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/७९

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और तो जो कुछ है सो है ही किंतु यहाँ की गंगा में दो बातें बहुत ही असाधारण, अलौकिक और अद्भुत दिखाई दीं। वास्तव में बड़ा चमत्कार है। जो वास्तविक भक्त है उनका हृदय मुक्त कंठ से स्वीकार करता है कि यह कंवल भगवती पतितपावनी गंगा की शक्ति है, जिनका मन कुछ कुछ डावाँ- डोल है उनका हृदय इस चमत्कार पर दृष्टि पड़ते ही विमल होता है और जो निरं नास्तिक हैं व हजार सिर मारने पर भी, साइंस की किताबों से माथा फोड़ने पर भी नहीं पा सकते, इसका कारण नहीं पा सकते। अस्तु! यदि उन्हें कुछ कारण नहीं मालूम पड़े तो रहने दीजिए। कवि जनों के हृदय के लोचन निराकार परमेश्वर के चरणारविदों तक पहुँच जाते हैं तब वे इसका कारण न बतलावें तो सचमुच इनकी जननी लाज जाय।

जिस गंगा को सिंहव्यालादिवाहिनी कहा जाता है, जिनके प्रबल प्रवाह के आगे बड़े बड़े पैराक भी घबड़ा उठते हैं वह काशी के तले ऐसी निस्तब्ध, निश्चेष्ट क्यों है? भगवती में डाली हुई वस्तु जहाँ की तहाँ ही क्यों पड़ी रहती है? बहकर क्यों नहीं चली जाती? हम आस्तिक हिंदुओं की दृष्टि में परमेश्वर की लीला का, उस अलौकिक नट के विचित्र नाट्य का कारण बतलाना भी दोष है, किंतु हमारी समझ में हिमालय का शिखर त्यागकर महात्मा भगीरथ के रथ के पीछे पीछे चलती चलती थककर या तो यहाँ भगवती ने विश्राम लिया है अथवा इस पुण्यक्षेत्र को देखकर महारानी यहाँ की