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आदर्श हिंदू

दूसरा भाग

प्रकरण--२४
प्रयाग के भिखारी

इक्कीसवें प्रकरण के अंत में उस अपरिचित यात्री के साथ पंडित प्रियानाथ ने जाकर देखा। उन्होंने अपनी आँखों से देख लिया, खूब निश्चय करके जान लिया और अच्छी तरह जिरह के सवाल करके निर्णय कर लिया कि उस नादिया का पाचवाँ पैर जो कंधे के पास लटक रहा था वह सरासर बनावटी था। पीछे से जोड़ा गया था। जो असाधु साधु बन- कर, नंदिकेश्वर का पुजापा लेता फिरता था वह वास्तव में हिंदू नहीं था। जब पंडितजी ने खूब खोद खोदकर उससे पूछा तब उसने साफ साफ कह दिया कि "महाराज, ये तो पेटभरौती के धंदे हैं।" इन्होंने इस बात के लिये जो जो परीक्षाएँ की उनमें एक यह भी थी कि जब उस नादिया के और और अंगों में सुई चुभो दी गई तब वह लात फटकारकर सिर हिलाकर मारने को दौड़ा किंतु जब पाँचवें पैर की पारी आई तब चुप।