पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/८२

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चाहे बालक बालिका की टाँग खैंचकर न ले जायँ किंतु वहाँ के गुंडे युवतियों को केवल जेवर के लालच से घसीटकर ले जाते हैं। उनकी लाशों को गंगाजी में पड़नेवाले पनालों में जा ठूँसते हैं। किंतु जरा किनारे की ओर तो दृष्टि डालकर देखो। साक्षात शांति किस तरह विराज रही है। यदि भगवान काशी के प्रपंच से बचावे जैसा आनंद, जैसी चित्त की एकाग्रता और जैसा सुख स्नान-संध्या करने में यहाँ है वैसा और कहीं न होगा! विरली जगह होगा।

ऊपर जो कुछ वर्णन किया गया है हमारी यात्रापार्टी के भक्ति-संमापण का सारांश है। और यह उस समय की बात- चीत का खाका है जब वे लोग काशी के स्टेशन से नाव में विराजकर अपने टिकने के स्थान की आर आ रहे थे। उस नौका में इन सात आदमियों के सिवाय एक अपरिचित मनुष्य और भी आ बैठा था, वह कौन था और कहाँ का रहने- वाला था सो बिना प्रयोजन बतलाने की आवश्यकता नहीं। जब तक पंडितजी का गौड़बोले से इस तरह संवाद हुआ, जब तक प्रियंवदा और बूढ़ा बुढ़िया ध्यानपूर्वक सुनते रहे, वह चुप- चाप बैठा हुआ इनकी ओर निहारता रहा। अपने अपने ध्यान में मग्न होकर किसी ने उसे अच्छी तरह से देखा भी नहीं। एक प्रियंवदा ने कनखियों से उसे देखा और देखते ही एक हलकी सी चीख मारकर वह अचेत हो गई। थोड़ा सा उपचार करने से थोड़ी देर में उसे जब होश आई तब वह