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जायगा। किंतु भगवती के ब्रह्माद्रव में कभी कीड़े पड़ने का नाम
नहीं। सूखने के वयले, आज का दस बीस वर्ष के बाद उम-
गेगा। भक्ति मात्र चाहिए। आप जैसे कुकर्मियों के पड़ोस
बसकर इस विमलसलिला गंगा पर पनाने की बदबू का कलंक
अवश्य लगा है, किंतु पनालों के निकट का ही गंगा जल
लेकर थोड़े दिन रख छोड़िए। पहले उसमें कीड़े पड़ेंगे।
राम राम उसमें नहीं! पनाले के जल का जो हिस्सा उसमें
मिल गया है उसमें। किंतु उन कीड़ों का केवल छः दिन में
नाश होकर फिर वही बिमल जल। यदि इस पर भी आप
लोग न समझें तो आपका नसीब! आप माता को हजार
गालियां दें परंतु माता तो माता ही है! संसार में माता के
समान कोई नहीं! लात मारनेवाले बालक को भी माता दूध
पिलाती है। पत्थर मारनेवाले पापी को भी आम्र फल देता
है। हाँ, इतना भेद अवश्य है कि माता के स्तनों को मुख्य में
लेकर बालक दूध पीता है और जोंक दूध की जगह उसका रक्त
पीती है। बस अधिकारी का भेद है। क्षमा करना महा-
राज, "हरि हर निंदा सुनै जो काना, होहि पाप गो घात
समाना।" बस इसी विचार से मैंने माता की निंदा करने का
सजा बताया है। नहीं तो में आपका दास हूँ। हम गृहस्थ
अब तक भी काषाय वस्त्रधारी को महात्मा समझते हैं। फिर
इन वस्त्रों को लज्जित न कीजिए। अपने कुकर्मों से और
साधुओं को गालियाँ न दिलवाइए। उनके सत्कार का खुन
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