पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/९

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(२)

पंडितजी का उस नंदिकेश्वर के दुःखों पर दया आई, हिंदूप्रयाग की ऐसी गिरी हुई दशा देखकर उनका हृदय एकदम काँप उठा। देश में इस तरह की ठगी का, धर्म के नाम पर अधर्म का, घोर कुकर्म का दृश्य उनकी आँखों के सामने आ खड़ा हुआ। बस इनकी आँखों में अनायास आँसू आ गए। इनका साथी देश के दुर्भाग्य, पर जब सरकार के दोष देने लगा तब यह बीच में उसकी बात काटकर बोले --

"नहीं! इसमें गवर्मेट का बिलकुल दोष नहीं। वह विदेशी है। वह यदि ऐसे कामों में हाथ डाले तो लोग चिल्ला उठेंगे। उसने प्रत्येक मत मतांतरवालों को अपने अपने धर्म के कामों में स्वतंत्रता दे दी है। इसके सिवाय वह कुछ नहीं कर सकती। इसमें विशेष दोष भोले हिंदुओं का है जो बिना निश्चय किए ऐसे ऐसे ठगों के साधु मानकर उन्हें पूजते हैं, जरा से झूठमूठ चमत्कार से सिद्ध मान बैठते हैं। किसी हिंदू राजा को यदि कोई सुझा दे, यदि उसमें भी परमेश्वर की दया से सुबुद्धि हो ते ऐसे ऐसे धूर्तों को उसके यहाँ से सजा अवश्य मिल सकती हैं। क्योंकि वह जैसे प्रजा का स्वामी हैं वैसे प्रजा के धर्म का भी रक्षक हैं। जैसे बूँदी के वृद्ध महाराज ने उभयमुखी गायों का अनर्थ बंद करवा दिया। और सबसे बढ़कर यह है कि यदि थेड़ा सा भी परिश्रम उठाकर भोले हिंदू ऐसे ठगों की ठगई का निश्चय किए बिना देना बंद कर दें तो सहज में उपाय हो सकता है।"