पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(८७)

किंतु इनके मुख्य इष्ट थे विश्वनाथ। बस भगवान् भूतभावन के दर्शन करने के लिये ये लोग दुपहरी में गए। प्रारब्ध वश इन्होंने जो मार्ग ग्रहण किया वह 'ज्ञानवापी' की ओर होकर था, इस कारण सबसे पहले इनकी दृष्टि औरंगजेबी मसजिद पर पड़ी। इतिहास में मंदिर और सो भी विश्वनाथ का मंदिर टूटकर मसजिद बनने की बात याद आते ही इनका हृदय हिल उठा। यह बोले --

"औरंगजेब के अत्याचार का नमूना है! मुसलमानों के साम्राज्य नष्ट होने के प्रारंभ का स्मारक है! उस समय के हिंदुओं की कायरता की बानगी है और अँगरेजों के सुराज्य की प्रशंसा करने के लिये दुंदुभी है। ओहो! कैसा भयानक समय था? किंतु काल बली ने उसे भी नष्ट कर डाला। जिस टुरात्मा ने पिता को कैद करके, भाइयों को मरवाकर, पुत्रों को सताकर हिंदुओं के धर्म को लातों से कुचल ढाला, वह शायद जानता होगा कि मैं अमर जड़ी खाकर आया हूँ। मैं कभी मरूँगा ही नहीं किंतु काल उसे भी खा गया, मुगलई बादशाहत को खा गया और मुसलमानी साम्राज्य का खा गया!"

यों पछताते, दुःख पाते जब यह भोलनाथ के सामने हुए तो एकदम इनके मन के समस्त विकार हवा की तरह उड़ गए। इन लोगों ने पहले साष्टांग प्रणाम किया फिर खड़े होकर, हाथ जोड़े हुए, पलक मारे बिना महादेव की मूर्ति में लौ लगाए पंडितजी ने प्रार्थना की --