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विलावल -- "शंकर महादेव देव भक्तन हितकारी। (टेक)
शीश गंग, भस्म अंग माल चंद्र घारी।
ओढ़े तन व्याघ्रखाल, लिपट रहे कंठ व्याल,
गौरी अर्द्धग बाल,पाप पुंज हारी।
राजत गल रुंडमाल, राजिव लोचन विशाल,
कर में डमरु रसाल, मार मान मारी।
दर्शन तें पाप जात, पूजन सुर पुर पठात,
गाल के बजात नाथ देत मुक्ति चारी।
गोपिनाथ* गिरिजापति गिरिधर प्रिय, गिरातीत,
गावत गुण वेद चार, पावस नहिं पारी।"

प्रियंवदा में यह सवैया पढ़ा --

"दानि जो चार पदारथ को त्रिपुरारि तिहूँ पुर में शिर टीको।
भोलो भोलो भाव को भूखो भलोई कियो सुमिरे तुलसी को॥
ता बिन आस को दास भयो, कबहूँ न मिट्यो बड़ लालच जी को।
साधो कहा कर, सायन तें जौ पै गधो नहीं पत्ति पारवती को॥"

गौड़बोले ने यह सवैया गाकर सुनाई --

जातें जरैं लोक विलोक त्रिलोचन सो विष लोक लियो है।
पान कियो धिप भूषन भो करुणा वरूणालय साई हियों है॥
मेरो ही फोरिबे जोग कपार किधों का काहू लखाय दियो है।
काहे न कान करो बिनती तुलसी कलिकाल विहाल कियो है॥

  • पंडित फतहसिंहजी रचित।