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आदर्श हिंदू
तीसरा भाग
प्रकरशा-४७
विराट् स्वरूप का चित्रपट

श्री जगदीशपुरी में प्रवेश कर जब तक यात्री बार्कडेय कंड के विमल जल में स्नान दानादि नहीं कर लेते, भगवान् के दर्शन करने की उसमे योग्यता नहीं होती, यह वहां की चाल है, चाल क्या है पुरी के माहसय में आज्ञा भी ऐसी ही है। मकान पद मामान रखकर डेरा डंडा जम जाने पर शरीरकृत्य से निवृत होकर पंडितजी प्रभृति नंगे पैरों स्नान करने के लिये गए । मार्ग में इन लोगों ने जो कुछ देखा उसका थोड़ा बहुत वर्णन समय आने पर किया जाएगा किंतु एक बात यहां प्रकाशित किए बिना इस लेखक की लेखनी एकदम रुक गई इसमें इस बिचारी कुछ दोष भी नहीं दिया जा सकता क्योंकि जब कई महीनों से यह पंडित जी के पीछे पीछे चल रही है, जब इसे एक क्षण के लिये भी उनका वियोग सह्य नहीं है और जब काम पड़ने पर यदि यह इधर उधर जाती है तो लपककर फिर उनके पास पहुँच जाती है