हट से पूर्व प्रसंग सरशण करके यद्यपि पंडित जी का धैर्य छूट ही जाता किंतु सौभाग्य से पंडित प्रियानाथ जी का पंडा "साक्षरा"को "राक्षस"में बदल देनेवाला साक्षर नहीं सचमुच, साक्षर निकला । वह अच्छा कर्मकांडी, मामी वैयाकरण होने के साथ ही अच्छा ज्योतिपी और अच्छा वैद्य भी था । इन गुणों के अतिरिक्त पंडों भर में, बस्ती भर में उसकी धाक थी । बस पंडित धरणीधर मिश्र का नाम सुनते ही समस्त पंडे अपनी अपनी बहियाँ बगल में दबाकर अलग हो गए और भिखारियाँ की भीड़ भी छैट गई ।
शास्त्र की विधि के साथ, श्रद्धापूर्वक, लोभरहित होकर प्रत्येक कार्य में प्रियानाथ जी को संतुष्ट करते हुए दोनों कार्य इन्हीं महाशय ने कराए । जब कार्य की समाप्ति का समय आया तब कर पंडित जी बोले--
“हाँ ! एक बात कहनी और रह गई थी। बहू रानी, इस मध्य पिंड का भोजन आज तुम्हारे ही लिये है। खून भक्तिपूर्वक भोजन करना । इसके सिवाय और कुछ नहीं ।"
सुखदा ने चाहे इसका मतलब न समझा हो परंतु प्रियंबदा ने पति की आँखों में अपने नेत्र उलझाकर मुसकुराते हुए सुखदा के कान में कुछ कहा और लज्जित होकर उसने अपना सिर झुका लिया । पंडित जी की पहली आज्ञा की जिस तरह तामील हुई थी उसी तरह इस समय हुई और यो श्राद्ध अनुष्ठान सुखपूर्वक संपन्न होने पर जो सुखदा किसी