निवास करके इन पात्रों की ऐसे घोर पापे में प्रवृत्ति क्यों है ? क्या पुष्कर में रहकर भी इनके पाप नहीं छूटते हैं ? हाँ नहीं छूटते हैं । इसलिये नहीं छूटते कि ये मलयगिरि निवासिनी भिल्लिनियों के समान चंदनतरूशाखा के जलाने पर भी उसकी सुगंधि के रसास्वादन को नहीं जानतें । वही स्तन के दूध को त्यागकर रक्त पान करनेवाली जलौका का सा मसला है। यदि हजार वर्ष तीर्थ सेवन करने पर भी किसी ने अपना मन न लगाया तो उसके सिर मारने से क्या लाभ ? परंतु क्यों जी गौड़बोले महाशय ! इन तीर्थगुरु पुष्कर महाराज को भी ऐसा घोर कर्म स्वीकृत है ? बस हद हो गई। हां इसलिये मंजूर हो सकता है कि यह गुरू हैं। लोगों को प्रत्यक्ष उदाहरण से दिखा रहे हैं कि पाप का यहीं प्रायश्चित है । पुण्य संचव का फल स्वर्ग और स्वर्ग में पहुँच जाने पर भी जिनके मनेाविकार शमन न हो उनकी यह गति है। अच्छा ! होगा ! परंतु जब हजारों लाखों यात्री यहाँ आते हैं, हजारों नर नारी यहाँ निवास करते हैं और सैकड़ों ही पशु पक्षियों को इसमें जल पान करना होता है तब सबकी रक्षा का से कुछ उपाय होना चाहिए ।"
"हाँ यजमान, अजमेर के धार्मिक सज्जनों ने एक उपाय सोचा है। वे चाहते हैं कि इन समस्त घाटों के सामने लोहे की जालियाँ लगा दी जायें ताकि मगर और घड़ियाल उनमें प्रवेश न कर सकें और सब लेग सुखपूर्वक स्नान कर सकें।"