पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/११

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तब पंडित जी के साथ ही यह भी रुकी तो इसका दोष है क्या? और उन्हें भी इस समय दोषभागी नहीं कहा जा सकता। उन्हें श्री जगदीश के दर्शन की हजार चटपटी हो, हजार वह चाहते हो कि जैसे बने वैसे इस कार्य से निवृत होकर बाबा के दर्शन करें क्योंकि देरी होने से वछि पट बंद हो जायेगे तो फिर चार बजे तक की छुट्टी है। इसलिये उन्होने मार्केडेय कुंड पर जाने में चाहे जितनी उतावल की किंतु उनके अंत:करण ने उनके चरणों को एकदम रोक दिया उनका ह्रदय पहले ही कोमल था फिर वहां के सीन में उसे मोम बना दिया, दयार्द कर दिया। वह सजल नेत्रों से अंतःकरण की भेदो वेदना के साथ, दया उत्पन्न करनेवाली शब्दों में अपने साथियों से और विशेषकर गौड़बोले से खड़े होकर कहने लगे-

"ओहो! बड़ा भयानक दृश्य है देखते ही रोमांच हो उठे। हृदय विदीण हुआ जाता है। आंखें बंद कर लेने को जी चाहता है। देखने की इच्छा नहीं होती। वह कुछ इसलिये नहीं कि इनके घावों में से पीप बहता देखकर मक्खियां भिन्नभिन्न से दुर्गंध के मारे माथा फटा जाने से घृणा होती हो। कल की किसने देखी है? इसके पूर्व संचित धोर पापों के फल से अपने प्रारब्ध का परिणाम भोगने के लिये यदि ये आज कोढ़ी हो गया तो क्या? किसे खबर है कि कल हमें भी ऐसी यातना भोगनी पड़े। वास्तव में जो कुछ है,यहाँ का यहाँ है। यह खुब सौदा नकद है,इस हाथ दे