पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/११२

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पाकर बासठ में मर गए । शरीर एक हमारा ब्राह्मण का है। परंतु अब तो भिखारी हैं, दुनिया के टुकड़े ले रहे हैं। दूसरे चौथे जब मिल जाय तब चबा चबेना माँग खाते हैं और ( दूर से दिखाकर) गुरू की गुफा में पड़े रहते हैं ।"

“अपके इस धैर्य को, आयकी इस धर्म-दृढ़ता को धन्य है ! परंतु महाराज, बाहर के कुसंस्कार से जब आपका काम बाधाएँ हाँगी, भोग विलास की इच्छा होगी और लोग आपको लालच में फँसावेंगे तब ये बात नहीं ठहरने पावेंगी। इस लिये एक बार गृहस्थाश्रम करो और इन बाई की रक्षा की । जमाना बहुत नाजुक है ।

“हाँ होगा । परंतु अब इच्छा नहीं । हाँ इच्छा विन्या पढ़ने की अवश्य है । कोई हमारे योग्य बातें सिखलानेवाला पंडित मिल जाय ते पढ़ेंगे जिससे रश्ते से चलकर साधना कर सके' ।"

"अच्छा ऐसा ही विचार दृढ़ हैं तो मारे गाँव में चलो । वहाँ सब प्रवंध हो सकेगा ।"

“नहीं बाबा ! गाँव में जाकर दुनिया के माया जाल में फंस जायें तेा किया कराया सब धूल में मिल जाय । जो आपने कहा सो सब सञ्चा हो जाय ।"

“नही महाराज, डरिए मत । यहाँ आपके ललचानेवाले, बिगाड़नेवाले बहुत मिलेंगे किंतु वहाँ किसी की मजाल नहीं जो आपको सता सके । एक पहाड़ी पर एक छोटी सी गुफा