पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/११३

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रहने को । बिल्कुल एकांत वास ।वही आपके पास भिक्षा पहूँच जायगी और गौड़बोले महाशय दोनों को पढ़ा आया करेंगे । आपकी इच्छा न हो तो आप बस्ती में न आना।

"अच्छा बाबा !” कहकर दोनों इनके साथ हुए और ये लोग भी देव-दर्शन को रवाना हो गए किंतु एक बात पंडित जी के हृदय में सभाई नहीं । हजार रोकने पर भी उनसे गौड़बोले को सुनाकर मन का बोझा इलका किए बिना न रहा गया । वह रो रोकर आंसू पोंछते हुए, हिचकियों भर भर कर फिर रुक जाते और फिर कहते हुए गौड़बोले को इस तरह सुनाने लगे---

"ओहो ! देश की कैसी दुर्दशा है ! भला यह लड़की केवल पेट भरने के लिये, साठ ही रुपये में बूढ़े को न बेच दी जाती तो विधवा क्यों होती ? हाय ! इन रुपयों की भी, ऐसा पाप कर्म करके केवल पेट भरने के लिये कमाए हुए रुपयों की चौरी ? हाथ बिचारे नन्हें उन्हें बालों को छोड़कर भूख की आग में माता की जल भरना घोर अनर्थ है । बस हद हो गई ! जिस देश में ऐसे उदाहरणा विद्यमान हैं उसमें अभी बालक साधुओं की ही भिक्षा बंद करके हमारा सुधारक समुदाय विलायत की नकल करना चाहता है। विलायत में भीख मांगनेवाला सजा पाता है और इस भय से वे लोग जब परिश्रम से पेट भर सकते हैं तब वहाँ की प्रजा अकर्मण्य नहीं होने पाती । यह सत्य है किंतु वह धनाढ्य देश है।