फिर बालक साधुओं की यदि भिक्षा बंद की जायगी तो इन जैसे निरपराधी भी सताए जायेंगे। ऐसे ऐसे झख मारकर पाप कर्म में प्रवृत होगें । इन दोनों ने दिखा दिया कि यदि तलाश की जाय तो इस घोर कलियुग में ध्रुव के समान साधु आज भी मिल सकते हैं । जरा सोचकर "इतना कहते कहले पंडित जी का गला रूंध गया। वह आगे कुछ न कह सके और इसी ग्रमे में पितामह ब्रह्मा जी के मंदिर में आरती का टकोरा होते ही "जय जय जय ! भगवान् ब्रह्मदेव की जय !" कहते हुए सब के सब मंदिर के भीतर प्रवेश कर दर्शन का आनंद लूटने लगे । पंडितजी ने विनय की-
"भगवन, आप देवताओं से लेकर चिउँटी तक के पितामह हैं । जब सृष्टि ही आप से हैं, जब उसके रचयिता ही आप हैं तब आपके पितामह कहना कौन बड़ी बात हुई । ब्रह्मा, विष्णु और महेश, भगवान जगदीश्वर के तीन रूप हैं। उत्पन्न करने के समय ब्रह्मा, पालन करती बार विष्णु और संहार करने में महेश-पर' तु जब उत्पत्ति ही न हो तब पालन किसका और इसलिये इस त्रिमूर्षि में आपका प्रथम आसन है । यह समष्टि संसार की समष्टि स्थिति के समष्टि विभाग हैं। अच्छा पितामह, यदि हम दुनियादारी का विवार करें तब भी उत्पत्तिक माता का पिता से अधिक आदर है । तब प्रभु ! यह तो दास को बतलाओ कि भगवन्, आप उस ग्वाल के छोकरे से कैसे हार गए । नहीं महाराज, यह भी अपकी